भारत ने आज एक ऐसे महान वैज्ञानिक को खो दिया जिसने न केवल अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में ऐतिहासिक योगदान दिया, बल्कि शिक्षा नीति को नया आयाम देने में भी अग्रणी भूमिका निभाई। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के पूर्व अध्यक्ष और नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के मसौदा समिति के अध्यक्ष रहे डॉ. के. कस्तूरीरंगन का आज सुबह बेंगलुरु स्थित उनके आवास पर 84 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनके निधन की सूचना मिलते ही वैज्ञानिक और शैक्षणिक जगत में शोक की लहर दौड़ गई।
डॉ. कस्तूरीरंगन उन विरले वैज्ञानिकों में से थे जिनका योगदान केवल तकनीकी सीमाओं तक सीमित नहीं था। ISRO के प्रमुख रहते हुए उन्होंने INSAT-2 सहित कई महत्वपूर्ण सैटेलाइट मिशनों की सफल लॉन्चिंग करवाई और भारत को अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर किया। वह भारतीय स्पेस साइंस की उस पीढ़ी से थे जिसने देश के पहले अंतरिक्ष कार्यक्रमों को मजबूत नींव दी और भारत को विश्व मानचित्र पर वैज्ञानिक शक्ति के रूप में स्थापित करने में भूमिका निभाई।
लेकिन उनका कार्यक्षेत्र केवल अंतरिक्ष विज्ञान तक सीमित नहीं रहा। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने देश के लिए एक ऐतिहासिक दस्तावेज तैयार किया—नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, जो 2020 में लागू हुई और देशभर में शिक्षा प्रणाली के मूलभूत ढांचे में परिवर्तन लाई। इस नीति को तैयार करने वाली समिति के वे अध्यक्ष थे और उनके विजन ने इस नीति को जमीनी जरूरतों से जोड़ते हुए एक समावेशी, बहु-विषयक और लचीली शिक्षा प्रणाली का सपना साकार किया।
डॉ. कस्तूरीरंगन ने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के चांसलर के रूप में अपनी सेवाएं दीं। वे कर्नाटक नॉलेज कमीशन के अध्यक्ष, भारतीय योजना आयोग के सदस्य और 2003 से 2009 तक राज्यसभा के मनोनीत सांसद भी रहे। इसके अतिरिक्त, उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (NIAS), बेंगलुरु के निदेशक के रूप में भी कार्य किया, जहाँ उन्होंने उच्च स्तर के शोध को बढ़ावा दिया।
विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया। उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया, जिनमें पद्म भूषण और पद्म विभूषण प्रमुख हैं। उनका निधन केवल एक वैज्ञानिक का अंत नहीं, बल्कि एक युग का अवसान है जिसने भारत को सोचने, समझने और बढ़ने की दिशा में कई रास्ते दिखाए।
उनके पार्थिव शरीर को 27 अप्रैल को अंतिम दर्शन के लिए बेंगलुरु स्थित रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट में रखा जाएगा, जहां देश भर से वैज्ञानिक, शिक्षाविद और गणमान्य लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचेंगे।
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