अक्षय तृतीया: समृद्धि, पुण्य और शुभारंभ का पर्व

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अक्षय तृतीया, जिसे ‘आखा तीज’ भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला एक अत्यंत पावन पर्व है। ‘अक्षय’ का अर्थ होता है—जो कभी क्षय (नाश) न हो। यही कारण है कि यह दिन शुभ कार्यों, दान-पुण्य, निवेश और नए आरंभ के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। यह दिन विशेष रूप से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आराधना के लिए समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दिन सच्चे हृदय से पूजा-पाठ, व्रत और दान करने से न केवल वर्तमान जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि अगले जन्मों तक अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार, इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान परशुराम का जन्म भी इसी तिथि को हुआ था। महाभारत में वर्णित है कि इसी दिन युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी, जिससे कभी अन्न की कमी नहीं होती थी। अक्षय तृतीया को विवाह, गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ, संपत्ति खरीदने, सोना-चांदी या भूमि निवेश जैसे कार्यों के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन बिना किसी मुहूर्त के भी कार्य आरंभ किए जा सकते हैं।

-प्रियंका सौरभ

अक्षय तृतीया, जिसे ‘आखा तीज’ भी कहा जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाने वाला एक अत्यंत पावन पर्व है। ‘अक्षय’ का अर्थ होता है—जो कभी क्षय (नाश) न हो। यही कारण है कि यह दिन शुभ कार्यों, दान-पुण्य, निवेश और नए आरंभ के लिए अत्यंत फलदायी माना जाता है। यह दिन विशेष रूप से मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की आराधना के लिए समर्पित होता है। मान्यता है कि इस दिन सच्चे हृदय से पूजा-पाठ, व्रत और दान करने से न केवल वर्तमान जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त होती है, बल्कि अगले जन्मों तक अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

पुराणों के अनुसार, इसी दिन सतयुग और त्रेतायुग का प्रारंभ हुआ था। भगवान परशुराम का जन्म भी इसी तिथि को हुआ था। महाभारत में वर्णित है कि इसी दिन युधिष्ठिर को अक्षय पात्र की प्राप्ति हुई थी, जिससे कभी अन्न की कमी नहीं होती थी। अक्षय तृतीया को विवाह, गृह प्रवेश, व्यापार आरंभ, संपत्ति खरीदने, सोना-चांदी या भूमि निवेश जैसे कार्यों के लिए बेहद शुभ माना जाता है। इस दिन बिना किसी मुहूर्त के भी कार्य आरंभ किए जा सकते हैं।

भारत त्योहारों की भूमि है, जहां हर पर्व किसी गहरी सांस्कृतिक, धार्मिक और आध्यात्मिक भावना से जुड़ा होता है। इन्हीं पर्वों में से एक है अक्षय तृतीया, जिसे ‘अखा तीज’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी विशेष भूमिका निभाता है। इस दिन किए गए पुण्य कर्म, दान, जप-तप, उपवास और सेवा कार्य ‘अक्षय’ यानी अविनाशी फल देने वाले माने जाते हैं। यह दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों के उच्च राशि में होने के कारण विशेष रूप से अबूझ मुहूर्त (सर्वश्रेष्ठ शुभ समय) माना जाता है, इसलिए इस दिन कोई भी शुभ कार्य बिना ज्योतिषीय परामर्श के भी किया जा सकता है।

अक्षय तृतीया से जुड़ी अनेक पौराणिक घटनाएं हैं, जो इस दिन को अत्यधिक पवित्र बनाती हैं। भगवान परशुराम का जन्म इसी दिन हुआ था, इसलिए इसे परशुराम जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इसी दिन युधिष्ठिर को भगवान सूर्य से ‘अक्षय पात्र’ प्राप्त हुआ था, जो कभी खाली नहीं होता था। व्यास जी और गणेश जी ने महाभारत की रचना इसी दिन आरंभ की थी। कुबेर ने इसी दिन मां लक्ष्मी की पूजा कर अपार धन प्राप्त किया था। भगवान विष्णु ने नर-नारायण, हयग्रीव और परशुराम के रूप में इसी दिन अवतार लिया।

इस दिन श्रद्धालु गंगा स्नान, दान, व्रत और पूजन करते हैं। मां लक्ष्मी-नारायण की विशेष पूजा की जाती है। सोना खरीदना इस दिन की खास परंपरा मानी जाती है, क्योंकि यह ‘अक्षय संपत्ति’ का प्रतीक होता है। पूजा में तांबे के कलश में जल भरकर भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है। खीर, फल, पंचामृत का भोग लगाया जाता है। गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, जल और धन का दान दिया जाता है। कन्याओं को भोजन कराना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है।

भारत के कई हिस्सों में यह दिन कृषि चक्र से भी जुड़ा है। किसान इसे बीज बोने और नई फसल के लिए कामना करने का दिन मानते हैं। राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र में कन्यादान और विवाह की परंपरा इस दिन विशेष रूप से प्रचलित है।

इस दिन सोना खरीदना शुभ माना जाता है। आभूषण कंपनियां, बैंक और निवेश कंपनियां इस दिन को अवसर के रूप में देखती हैं। लोग नया व्यापार शुरू करते हैं, मकान, ज़मीन या वाहन खरीदते हैं और सोना, चांदी, स्टॉक या म्यूचुअल फंड में निवेश करते हैं। यह न केवल धार्मिक आस्था का परिचायक है, बल्कि लोगों की आर्थिक समझ और परंपरा के समन्वय का प्रतीक भी है।

पारंपरिक रूप से अक्षय तृतीया प्रकृति के साथ संतुलन और सामंजस्य का पर्व रहा है। यह गर्मी के मौसम की शुरुआत में आता है, जब जल संरक्षण, वृक्षारोपण, और पक्षियों के लिए पानी रखने जैसे कार्यों को बढ़ावा दिया जाता है। कई सामाजिक संगठनों द्वारा इस दिन जल से सेवा (वॉटर बैंकिंग) और हरित अभियान चलाए जाते हैं। शहरी जीवन की भागदौड़ में यह एक ऐसा विराम है, जो हमें प्रकृति के साथ एक बार फिर से जुड़ने का अवसर देता है।

आज के समय में जब लोग तेजी से उपभोक्तावाद और भागमभाग की ओर बढ़ रहे हैं, अक्षय तृतीया हमें आध्यात्मिक संतुलन, दया और सद्कर्मों की निरंतरता की याद दिलाता है। यह पर्व सिखाता है कि केवल बाहरी संपत्ति नहीं, बल्कि अक्षय मूल्य—सच्चाई, करुणा, दानशीलता और धर्म ही जीवन को समृद्ध बनाते हैं।

अक्षय तृतीया केवल एक पर्व नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, पुण्य और सकारात्मक आरंभ का उत्सव है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में जो भी शुभ कार्य करें, वह केवल भौतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक उन्नति की ओर भी अग्रसर हो। आज जब हम अक्षय तृतीया मनाएं, तो एक वचन खुद से करें—कि हम न केवल अपने लिए, बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी कुछ ‘अक्षय’ छोड़कर जाएं।

“जो करे सेवा जल की, वृक्ष लगाए प्यार,
उसके जीवन में रहे अक्षय सुख-संसार।”


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