भारत के लोकतंत्र में सत्ता और प्रशासन के बीच संतुलन ही प्रणाली की नींव रहा है, लेकिन हालिया घटनाएं इस संतुलन पर गंभीर सवाल खड़े कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के कैबिनेट मंत्री पर नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के एक वरिष्ठ अधिकारी के साथ बर्बरता करने का आरोप अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर से एक और चौंकाने वाली घटना सामने आई, जहां भारतीय प्रशासनिक प्रणाली का एक और स्तंभ हिंसा का शिकार बना। नगर निगम के अतिरिक्त आयुक्त और ओडिशा प्रशासनिक सेवा के वरिष्ठ अधिकारी रत्नाकर साहू पर खुलेआम उनके दफ्तर में हमला किया गया, उन्हें घसीटते हुए बाहर लाया गया और सार्वजनिक रूप से पीटा गया। यह पूरी घटना न केवल प्रशासनिक गरिमा के लिए अपमानजनक है, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की बुनियादी संरचना पर भी हमला है।
भुवनेश्वर नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारी रत्नाकर साहू, जो कि ओडिशा प्रशासनिक सेवा में अतिरिक्त सचिव स्तर के अधिकारी हैं, पर यह हमला उस वक्त हुआ जब वे जनसुनवाई के लिए नागरिकों से मिल रहे थे। बताया जा रहा है कि एक भाजपा पार्षद के साथ जुड़े कुछ लोग जबरन उनके चैंबर में घुसे और बातचीत के नाम पर विवाद खड़ा कर दिया। बहस अचानक उग्र हुई और फिर साहू को उनके ही कार्यालय से घसीटकर बाहर लाया गया, जहां खुलेआम लात-घूंसे मारे गए। घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और पूरे राज्य में आक्रोश की लहर दौड़ गई। इस दौरान अपहरण का प्रयास भी सामने आया, जब हमलावरों ने साहू को जबरन गाड़ी में बैठाने की कोशिश की।
हमले के बाद प्रशासनिक अमले में गहरा रोष है। ओडिशा प्रशासनिक सेवा संघ ने इस हिंसा की कड़ी निंदा करते हुए सामूहिक अवकाश की घोषणा कर दी है। भुवनेश्वर के कर्मचारी संगठनों और राज्य के तमाम प्रशासनिक अधिकारियों ने एकजुटता के साथ अपना विरोध दर्ज किया है। बीजू जनता दल और कांग्रेस दोनों ने इस घटना को भाजपा की संरक्षित हिंसा करार दिया और कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति को राज्य की सबसे बड़ी असफलता बताया।
घटना के राजनीतिक मायने भी बेहद गंभीर हैं। यह हमला ऐसे समय हुआ है जब कुछ ही दिन पहले हिमाचल प्रदेश के शिमला में कांग्रेस के कैबिनेट मंत्री अनिरुद्ध सिंह पर नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के प्रोजेक्ट मैनेजर अचल जिंदल के साथ मारपीट का आरोप लगा था। जिंदल फिलहाल शिमला के IGMC अस्पताल में भर्ती हैं और उनके सिर पर गहरे जख्म हैं। ओडिशा की घटना में भी उसी तरह की आक्रामकता, सत्ता का अहंकार और प्रशासनिक मर्यादा का खुलेआम उल्लंघन देखा गया।
रत्नाकर साहू ने मीडिया को बताया कि वे सिर्फ जनसुनवाई कर रहे थे और कुछ लोग, जो खुद को भाजपा पार्षद का समर्थक बता रहे थे, चैंबर में घुस आए और उन पर हमला कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि उनकी जान लेने की कोशिश की गई और उनकी गरिमा को रौंदते हुए लोकतंत्र के एक सेवा अधिकारी को सड़क पर घसीटा गया।
इस हमले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत के भीतर लोकतांत्रिक प्रशासनिक ढांचे पर खतरा मंडरा रहा है। अधिकारी अब सुरक्षित नहीं हैं, जनसुनवाई अब युद्धभूमि में बदल रही है और राजनैतिक दल अपने कार्यकर्ताओं के ज़रिए राज्य की मर्यादाओं को चुनौती दे रहे हैं। जो दृश्य ओडिशा और हिमाचल में सामने आए हैं, वे सिर्फ दो घटनाएं नहीं बल्कि लोकतंत्र के प्रति एक चेतावनी हैं।
अब समय है कि देश की सरकारें और राजनीतिक दल इस गिरते राजनीतिक आचरण के खिलाफ न केवल सख्त कार्रवाई करें, बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों को सुरक्षा का विश्वास भी दिलाएं। क्योंकि अगर अफसर ही सुरक्षित नहीं होंगे तो आम जनता की आवाज कौन सुनेगा?
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