डेरा बस्सी का सिविल अस्पताल शुक्रवार रात उस वक्त एक खौफनाक हिंसा का गवाह बना, जब मुकंदपुर गांव की दो प्रतिद्वंद्वी गुटों ने इलाज के दौरान ही एक-दूसरे पर हमला बोल दिया। यह घटना न सिर्फ चिकित्सा संस्थानों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि किस तरह निजी रंजिशें सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों की पवित्रता को भी तार-तार कर रही हैं।
घटना की शुरुआत मुकंदपुर गांव में हुई, जहां पुरानी रंजिश को लेकर दो गुटों में झगड़ा हुआ। झगड़े के बाद घायल हुए दोनों पक्ष इलाज के लिए डेरा बस्सी सिविल अस्पताल पहुंचे। लेकिन वहां जो हुआ, उसने अस्पताल को एक खूनी अखाड़े में तब्दील कर दिया। प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा बनाए गए वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि कैसे अनिल कुमार उर्फ हनी पंडित, नरेश कुमार, नायब राम, अंग्रेज़ सिंह, गुरमीत सिंह, महिपाल और मनीष कुमार सहित अन्य आरोपी इलाज के दौरान एक-दूसरे को देख बेकाबू हो गए।
भीतर उमड़ते गुस्से ने अस्पताल के शांत परिसर को हिंसा के तूफान में बदल दिया। अस्पताल में रखे उपकरण, चेयर, क्यू मैनेजर, गमले और यहां तक कि सर्जिकल टूल्स तक को हथियार बना लिया गया। कैंची जैसी धारदार चीजों से कई लोगों को गंभीर रूप से घायल किया गया, वहीं कुछ को इतनी बेरहमी से पीटा गया कि वे अचेत हो गए। चारों तरफ खून के छींटे, टूटे उपकरण और घबराए मरीज—ये दृश्य अस्पताल की भयावह स्थिति को बयान कर रहे थे।
इस हिंसा से न केवल मरीजों की जान खतरे में पड़ी, बल्कि महिला डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ को भी अपनी सुरक्षा के लिए खुद को लॉक करना पड़ा। डर के मारे कई मरीज इलाज अधूरा छोड़कर भाग खड़े हुए। इसके बाद डॉक्टरों ने तत्काल हड़ताल का ऐलान करते हुए अस्पताल में सुरक्षा इंतजामों की भारी कमी पर सवाल उठाए। एक महिला डॉक्टर ने बताया कि उस समय ड्यूटी पर ज़्यादातर महिलाएं थीं और उनके लिए खुद को बचाना बेहद मुश्किल हो गया था।
पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. बलबीर सिंह ने शनिवार को इस घटना को लेकर सख्त रुख अपनाते हुए दोनों पक्षों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि अस्पताल शांति क्षेत्र होते हैं, जहां किसी भी प्रकार की हिंसा या तोड़फोड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने बताया कि पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज की जांच और प्रत्यक्षदर्शियों के बयान दर्ज करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि मेडिकल स्टाफ पर हमला और अस्पताल संपत्ति को नुकसान पहुंचाना भारतीय न्याय संहिता के तहत गैर-जमानती अपराध है।
घटना में शामिल दोनों पक्षों के आरोप-प्रत्यारोप का दौर भी जारी है। जहां एक गुट ने दूसरे पर अवैध रेत खनन में शामिल होने का आरोप लगाया है, वहीं मोहाली प्रशासन ने गांव में किसी भी प्रकार की अवैध खनन गतिविधि से इनकार किया है।
यह घटना पंजाब के स्वास्थ्य तंत्र पर गहरी चोट है और स्पष्ट संकेत है कि अस्पतालों की सुरक्षा को लेकर अब और लापरवाही नहीं बरती जा सकती। यह सिर्फ कानून व्यवस्था का मामला नहीं, बल्कि समाज की सामूहिक संवेदनहीनता की भी एक चेतावनी है। यह ज़रूरी हो गया है कि सरकार अस्पतालों को संरक्षित करने के लिए ठोस कदम उठाए, ताकि भविष्य में कोई भी मरीज या डॉक्टर भय के साये में न रहे। डेरा बस्सी की यह रात एक चेतावनी है—स्वास्थ्य सेवा के मंदिर को रणभूमि बनने से रोकना ही होगा।
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