बरसात के मौसम में डेंगू और मलेरिया: सतर्कता ही सबसे बड़ा उपचार

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जब आसमान से राहत बनकर बारिश बरसती है, तब जमीन पर कई बार बीमारियाँ भी उसी राहत की ओट में अपना जाल बिछा लेती हैं। बरसात का मौसम जितना ठंडक और हरियाली लेकर आता है, उतना ही डेंगू और मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारियों का खतरा भी बढ़ा देता है। यह दोनो संक्रामक रोग हर साल सैकड़ों जानें निगल लेते हैं और लाखों लोगों को बिस्तर पर डाल देते हैं। खासकर जून से सितंबर के महीनों में इनका प्रकोप चरम पर होता है।

डेंगू और मलेरिया दोनों ही मच्छरों के माध्यम से फैलने वाली बीमारियाँ हैं। डेंगू एडीज मच्छर के काटने से होता है, जो साफ पानी में पनपता है और दिन के समय काटता है। वहीं मलेरिया एनाफिलीज मच्छर के ज़रिए फैलता है, जो गंदे और रुके हुए पानी में अपने अंडे देता है और रात के समय सक्रिय होता है। इन दोनों बीमारियों की शुरुआत बुखार, सिरदर्द, बदन दर्द और थकावट जैसे लक्षणों से होती है, लेकिन सही समय पर इलाज न हो तो यह प्लेटलेट्स की गिरावट, अंगों की विफलता और यहां तक कि मृत्यु का कारण भी बन सकते हैं।

इन खतरों से निपटने के लिए सबसे ज़रूरी है—सावधानी और सजगता। बरसात के मौसम में जहां जलभराव होता है, वहीं मच्छरों को जीवन मिलता है। जलभराव चाहे किसी गली में हो, छत पर रखे पुराने टायर में या अस्पताल की अधूरी इमारत में, यह मच्छरों के लिए आदर्श प्रजनन स्थल बन जाता है। हैरानी की बात यह है कि कभी-कभी स्वास्थ्य सेवाओं के केंद्र—अस्पताल और क्लीनिक तक इन मच्छर जन्य खतरों से अछूते नहीं रहते। यही विडंबना दर्शाती है कि इस समस्या से निपटने के लिए केवल सरकारी चेतावनियाँ नहीं, बल्कि हर स्तर पर गंभीर जागरूकता की आवश्यकता है।

बरसात में डेंगू और मलेरिया से बचाव केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह एक साझा सामाजिक ज़िम्मेदारी है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा कीटनाशक दवाओं का छिड़काव, जलभराव वाले क्षेत्रों की निगरानी, और सार्वजनिक स्थानों की सफाई जैसे उपाय निश्चित रूप से मददगार होते हैं। लेकिन यदि लोग खुद अपने घरों और आसपास की सफाई नहीं रखेंगे, तो यह सारे प्रयास अधूरे ही रहेंगे।

एकल प्रयासों की जगह सामूहिक चेतना ही वह उपाय है, जिससे इस समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है। घर के गमलों में जमा पानी, कूलर की ट्रे, छत पर पड़े प्लास्टिक के डिब्बे—ये सब डेंगू और मलेरिया के निमंत्रण हैं। इनसे छुटकारा पाना ही पहला इलाज है। साथ ही, पूरी बांह के कपड़े पहनना, रात को मच्छरदानी का प्रयोग करना और समय-समय पर अपने स्वास्थ्य की जांच करवाना भी इस लड़ाई के हथियार हैं।

जहां सरकार अपनी तरफ से प्रयास कर रही है, वहीं यह ज़रूरी है कि नागरिक भी एक सशक्त भागीदार बनें। बरसात का मौसम आनंददायक हो सकता है, यदि हम मच्छरों को पनपने का अवसर न दें। डेंगू और मलेरिया कोई सामान्य बुखार नहीं, बल्कि हमारी लापरवाही का परिणाम होते हैं। इनसे बचाव कोई कठिन विज्ञान नहीं, बस कुछ आदतों में बदलाव की माँग है।

यह समय है सजग रहने का, जागरूक होने का और जिम्मेदारी उठाने का। क्योंकि जब बात जीवन की हो, तो सावधानी ही सबसे बड़ी सुरक्षा बन जाती है।

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