भारत की ऊर्जा रणनीति पर मंडराया संकट, वैश्विक आपूर्ति व्यवस्था पर पड़ सकता है भारी असर

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अंतरराष्ट्रीय दबावों और प्रतिबंधों के बीच भारत एक बार फिर वैश्विक ऊर्जा भू-राजनीति के केंद्र में आ गया है। अमेरिका द्वारा रूस और ईरान से संबंधित जहाजों, कंपनियों और व्यक्तियों पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के चलते भारत की ओर आने वाले रूसी तेल टैंकरों को अपनी दिशा बदलनी पड़ी है। इन घटनाक्रमों से यह स्पष्ट हो गया है कि ऊर्जा क्षेत्र अब केवल व्यापार का विषय नहीं रहा, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय संबंधों, कूटनीति और राष्ट्रीय हितों से सीधे जुड़ा हुआ मुद्दा बन चुका है।

हाल ही में, अमेरिकी ट्रेजरी विभाग ने 115 से अधिक ईरान और रूस से जुड़े संस्थानों, व्यक्तियों और जहाजों पर प्रतिबंध लगाए। इसके बाद कम से कम तीन प्रमुख टैंकरों—Tagor, Guanyin और Tassos—ने भारत की ओर जाने की बजाय अन्य बंदरगाहों की ओर रुख किया। Tagor जहाज, जो पहले चेन्नई की ओर आ रहा था, अब चीन के दालियान बंदरगाह की ओर भेज दिया गया है। वहीं Tassos को मिस्र के पोर्ट सईद और Guanyin को सिका बंदरगाह की ओर मोड़ दिया गया है, जहां से भारत की सबसे बड़ी तेल कंपनियां जैसे रिलायंस और भारत पेट्रोलियम कच्चा तेल प्राप्त करती हैं।

इन घटनाओं ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा नीति को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। भारत सरकार ने स्पष्ट किया है कि उसने किसी भी सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरी को रूस से तेल खरीदने या न खरीदने का कोई निर्देश नहीं दिया है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और शिपिंग कंपनियों की असहयोगिता ने स्पष्ट कर दिया है कि भारत की ऊर्जा आपूर्ति पर एक बड़ा दबाव बन चुका है।

इससे पहले भी Nayara Energy जैसी कंपनियां यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के चलते संकट में आ चुकी हैं। उनके टैंकर अब मुंद्रा और कोच्चि जैसे बंदरगाहों पर फंसे हुए हैं, और शिपिंग कंपनियों ने अपना संचालन बंद कर दिया है। दूसरी तरफ IOC और BPCL जैसे सरकारी संस्थानों की ओर से Tagor टैंकर के तेल को लेकर कोई भी आधिकारिक प्रतिक्रिया अब तक नहीं आई है। इससे यह संकेत मिलता है कि ऊर्जा क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों के लिए निर्णय लेना अब पहले से कहीं ज्यादा जटिल और संवेदनशील हो चुका है।

इस संकट ने एक और गंभीर आशंका को जन्म दिया है। यदि ट्रंप प्रशासन भारत पर दबाव डालने में सफल हो जाता है और भारत रूस से तेल खरीद बंद करता है, तो रूस बदले में अपनी CPC पाइपलाइन को बंद कर सकता है, जो अमेरिका के लिए भी एक महत्वपूर्ण तेल आपूर्ति मार्ग है। इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित होगी और ब्रेंट क्रूड की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर जा सकती हैं। यह न केवल भारत बल्कि समूचे एशियाई बाज़ारों के लिए चिंता का विषय बन सकता है।

यह खबर क्यों है महत्वपूर्ण

इस पूरी स्थिति का महत्व केवल इतना नहीं कि भारत को अस्थायी रूप से कुछ जहाजों का तेल नहीं मिल पाया, बल्कि यह इस बात का संकेत है कि ऊर्जा आपूर्ति अब शुद्ध आर्थिक गतिविधि नहीं रही। यह सीधे-सीधे अंतरराष्ट्रीय कूटनीति, व्यापारिक रणनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ गई है। जब वैश्विक शक्तियां ऊर्जा मार्गों पर नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश करती हैं, तो इसका असर सिर्फ तेल की कीमतों तक सीमित नहीं रहता बल्कि सामाजिक स्थिरता, आर्थिक विकास और औद्योगिक उत्पादन पर भी पड़ता है।

इस संदर्भ में “shadow fleet” जैसे संचरण नेटवर्क की चर्चा भी प्रासंगिक हो जाती है। कई टैंकर अब जानबूझकर अपने नाम, झंडे और ट्रैकिंग सिस्टम को बदलते हैं ताकि प्रतिबंधों से बचा जा सके। इससे न केवल वैश्विक व्यापार में पारदर्शिता खत्म होती है, बल्कि समुद्री पर्यावरण और सुरक्षा को भी खतरा उत्पन्न होता है। तेल रिसाव, टकराव और नौवहन दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ जाती है, जिसका दीर्घकालिक दुष्प्रभाव स्थानीय समुदायों और समुद्री जीवन पर पड़ता है।

समाज और नीति निर्माण के लिए क्या सबक

भारत जैसी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह समय आत्मचिंतन का है। भारत को अब अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लानी होगी और वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों जैसे सौर, पवन और जैविक ईंधन को प्राथमिकता देनी होगी। साथ ही, घरेलू शोधन क्षमता बढ़ाकर और रणनीतिक तेल भंडारण व्यवस्था को मजबूत बनाकर इस तरह की आपात स्थितियों से निपटने की नीति तैयार करनी होगी। नीति निर्माताओं को चाहिए कि वे अंतरराष्ट्रीय सहयोग के नए प्लेटफार्म तैयार करें जिससे आपूर्ति श्रृंखलाओं को अनुकूल और पारदर्शी बनाया जा सके।

भारत की जनता के लिए यह जानना जरूरी है कि ऊर्जा केवल ईंधन नहीं बल्कि जीवन की गति का आधार है। जब तक सरकारें और उद्योग मिलकर पारदर्शी और सतत ऊर्जा नीति तैयार नहीं करेंगे, तब तक देश निरंतर ऐसे भू-राजनीतिक जोखिमों से जूझता रहेगा। यह अवसर है कि भारत इस संकट को एक संकेत की तरह ले और अपनी ऊर्जा नीति को दीर्घकालिक दृष्टिकोण से फिर से गढ़े।

यह समाचार वेब मीडिया और अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसियों जैसे रॉयटर्स, टाइम्स ऑफ इंडिया और अन्य प्रतिष्ठित स्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है।

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