यमुनानगर में मानसून की मार, गांवों में बाढ़ का खतरा और लोगों का पलायन

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हरियाणा में मानसून की दस्तक के बाद सबसे अधिक प्रभाव यमुनानगर जिले पर पड़ा है, जहां लगातार बारिश के चलते कई गांवों में बाढ़ जैसे हालात बन गए हैं। जिले के कुछ गांवों का अन्य क्षेत्रों से संपर्क टूट चुका है और ग्रामीणों में भय और असुरक्षा का माहौल है। बारिश का पानी खेतों, सड़कों और गलियों में भर गया है, जिससे सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। सड़कों पर जलभराव से राहगीरों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। बुधवार को कई इलाकों में भारी बारिश दर्ज की गई, जिसके कारण क्षेत्र के नदी-नालों का जलस्तर खतरे के निशान तक पहुंच गया।

प्रभावित इलाकों में एक नदी का जलस्तर अचानक बढ़ने से गांवों में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। लोग अपने घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं। घबराए हुए ग्रामीण सिर पर घरेलू सामान और कंधों पर बिस्तर लेकर निकलने को मजबूर हो गए हैं। पिछले वर्ष की त्रासदी को याद करते हुए ग्रामीणों ने बताया कि उनका सारा सामान पानी में बह गया था और अब तक उन्हें मुआवजा नहीं मिला। इस बार वे किसी भी हालात में फिर से वैसी स्थिति में नहीं रहना चाहते। यही वजह है कि कई परिवार रात के समय ही गांव छोड़कर निकल गए।

घरों में पानी घुसने की आशंका के चलते लोगों ने अपने सामान को दीवारों पर टांग दिया है और घरेलू वस्तुओं को ऊंचाई पर रखा जा रहा है ताकि नुकसान से बचा जा सके। कुछ इलाकों में तीन-तीन फीट तक पानी भर गया है, जिससे आवागमन पूरी तरह ठप हो गया है। बारिश इतनी तेज थी कि गाड़ियां सड़कों पर बहती हुई दिखाई दीं और खेतों में पानी भर जाने के कारण वे नदी जैसे नजर आए।

स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रशासन केवल तमाशबीन बना हुआ है और समय रहते आवश्यक कदम नहीं उठाए गए। वे इस बात से बेहद आक्रोशित हैं कि हर साल ऐसी स्थिति आती है लेकिन न तो कोई स्थायी समाधान निकलता है और न ही राहत का भरोसेमंद इंतजाम होता है। इससे नाराज ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि यदि इस बार कोई नेता सिर्फ चुनाव के वक्त उनका हालचाल लेने आया, तो उन्हें गांव में घुसने नहीं दिया जाएगा।

इस पूरे घटनाक्रम से यह स्पष्ट होता है कि मानसून के साथ जुड़ी आपदाएं अब केवल मौसमी घटनाएं नहीं रहीं, बल्कि एक बड़ी प्रशासनिक चुनौती बन गई हैं। राहत कार्यों की धीमी गति, जल निकासी की व्यवस्था का अभाव और बाढ़ प्रबंधन की कमज़ोर तैयारी ने लोगों को अपने हाल पर छोड़ दिया है। इस त्रासदी ने एक बार फिर दिखा दिया कि केवल बारिश नहीं, बल्कि व्यवस्था की असफलता भी बर्बादी की वजह बनती है।

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