हिमाचल प्रदेश में मॉनसून ने दस्तक के साथ ही तबाही का रुख अख्तियार कर लिया है। कुल्लू जिले में बुधवार को मूसलाधार बारिश ने ऐसा कहर बरपाया कि सैंज, मणिकर्ण, बंजार के तीर्थन और गड़सा घाटियों में जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया। सबसे भयावह स्थिति सैंज घाटी में देखी गई, जहां बादल फटने की घटना के बाद जीवा नाला उफान पर आ गया और उसके साथ आए तेज़ सैलाब में एक जीप बह गई, वहीं रैला गांव में एक पिता, उसकी बेटी और एक अन्य व्यक्ति के बह जाने की खबर से पूरे इलाके में दहशत फैल गई है।
जीवा नाले में आई अचानक बाढ़ ने आसपास के इलाकों को अपनी चपेट में ले लिया। हाईड्रो प्रोजेक्ट कंपनी के कर्मचारियों के लिए बनाए गए शेड में मलबा और पानी घुस आया, जिससे वहां रह रहे लोग जान बचाकर भागे। सैंज खड्ड के जलस्तर में इतनी तेजी से वृद्धि हुई कि कुछ ही समय में कई पुलों और सड़क मार्गों को नुकसान पहुंचा। गड़सा घाटी के मनिहार क्षेत्र में पुल बहने की सूचना है, जबकि मणिकर्ण की तोश पहाड़ियों में तेज बारिश के कारण बाण गंगा खड्ड में बाढ़ आ गई। इस बाढ़ की चपेट में कसोल में खड्ड किनारे पार्क की गई कई पर्यटकों की गाड़ियां बह गईं, जिससे स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ पर्यटन विभाग की चिंता भी बढ़ गई है।
कुल्लू जिले में बंजार से विधायक सुरेंद्र शौरी ने पूरे घटनाक्रम को लेकर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने बताया कि तीर्थन, सैंज और गड़सा घाटियों में सुबह से भारी बारिश हो रही है और सैंज खड्ड का जलस्तर बीते वर्षों की तुलना में कहीं अधिक तेज़ी से बढ़ा है। उन्होंने प्रशासन से त्वरित राहत और बचाव कार्य शुरू करने की अपील की है और लोगों से आग्रह किया है कि वे नदी-नालों के पास न जाएं, क्योंकि खतरा अभी टला नहीं है।
सैंज के बिहाली गांव में खड्ड किनारे भूमि कटाव के चलते गांव पर खतरा मंडरा रहा है। पानी का वेग इतना अधिक है कि बड़े-बड़े पेड़ भी खड्ड में बहते दिखाई दे रहे हैं। जिले के कई गांवों में अफरातफरी का माहौल है और लोग सुरक्षित स्थानों की ओर पलायन कर रहे हैं। मौसम विभाग ने पहले ही बुधवार के लिए ऑरेंज अलर्ट जारी किया था और अब अगले एक सप्ताह तक राज्य में लगातार बारिश की संभावना जताते हुए येलो अलर्ट लागू किया गया है।
ब्यास नदी के जलस्तर में लगातार वृद्धि के चलते मंडी और कुल्लू के बीच अलर्ट जारी कर दिया गया है और पंडोह डैम के गेट खोलने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। प्रशासन ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि लोग किसी भी सूरत में नदियों और खड्डों के किनारे न जाएं।
हिमाचल में मानसून की इस शुरुआत ने जिस तरह की आपदा को जन्म दिया है, उससे यह साफ है कि राज्य को एक बार फिर प्राकृतिक संकट का सामना करना पड़ सकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव अब स्पष्ट रूप से दिखने लगा है और इससे निपटने के लिए प्रशासन, नागरिकों और नीति निर्माताओं को मिलकर ठोस रणनीति अपनाने की आवश्यकता है।
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