राज्य सरकार द्वारा नगरपालिकाओं को नगर परिषद में अपग्रेड करने की प्रक्रिया एक बार फिर कानूनी दायरे में फंसती दिख रही है। समालखा और बरवाला नगरपालिकाओं के संदर्भ में स्थिति और भी जटिल हो गई है, क्योंकि दोनों निकायों के निर्वाचित प्रतिनिधियों का कार्यकाल अभी शेष है।

मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
- चुनाव कराना कानूनी रूप से आवश्यक:
यदि मौजूदा नगरपालिकाओं को नगर परिषद में अपग्रेड किया जाता है, तो नए सिरे से चुनाव कराना कानूनन अनिवार्य होगा। - वर्तमान निकायों का कार्यकाल शेष:
समालखा और बरवाला नगरपालिकाओं के प्रत्यक्ष निर्वाचित अध्यक्षों और सभी वार्ड सदस्यों का कार्यकाल जुलाई-अगस्त 2027 तक है। ऐसे में अपग्रेड की स्थिति में उनका पांच वर्षीय कार्यकाल प्रभावित होगा। - अदालत जा सकते हैं प्रतिनिधि:
यदि सरकार मौजूदा कार्यकाल के दौरान ही नगरपालिकाओं को नगर परिषद में बदलती है, तो प्रभावित प्रतिनिधि इस निर्णय के खिलाफ अदालत का रुख कर सकते हैं। - कानूनी प्रतिबंध स्पष्ट:
नगरपालिका सदन के कार्यकाल के दौरान उसे नगर परिषद में परिवर्तित नहीं किया जा सकता। यह संवैधानिक प्रावधान स्पष्ट रूप से नगर निकायों की स्वायत्तता की रक्षा करता है। - विभागीय निर्णय पर निगाहें:
अब यह देखना होगा कि शहरी स्थानीय निकाय विभाग इस संवेदनशील विषय पर क्या निर्णय लेता है। विभाग यदि जल्दबाजी में कोई कदम उठाता है, तो यह मामला कानूनी विवाद में फंस सकता है।
राज्य सरकार के लिए यह एक संतुलन का मामला बन गया है — विकास के नाम पर प्रशासनिक उन्नयन और जनप्रतिनिधियों के अधिकारों के बीच सामंजस्य कैसे बनाया जाए, यही आने वाले दिनों में तय करेगा कि समालखा और बरवाला की नगरपालिका किस दिशा में जाएंगी।

