हरियाणा में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को लेकर सियासी घमासान तेज़ हो गया है। पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने राज्य सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए मनरेगा के तहत काम रोकने के आदेशों को गरीबों और ग्रामीणों के साथ अन्याय करार दिया है। उन्होंने इस पूरे मामले पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग करते हुए सरकार से जवाबदेही तय करने को कहा है।
दुष्यंत चौटाला का आरोप है कि राज्य के कई जिलों में मनरेगा के काम अचानक रोक दिए गए, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार का संकट पैदा हो गया है। उन्होंने कहा कि यह योजना केवल मज़दूरी का साधन नहीं, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। ऐसे में बिना स्पष्ट कारण बताए काम रोकना सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करता है।
उनका कहना है कि मनरेगा के तहत लाखों परिवारों को सालाना न्यूनतम रोज़गार की गारंटी दी जाती है। जब खेतों में काम कम होता है, तब यही योजना ग्रामीणों के लिए जीवनरेखा बनती है। लेकिन मौजूदा सरकार ने इस योजना को या तो ठीक से लागू नहीं किया या फिर जानबूझकर इसे कमजोर किया जा रहा है।
दुष्यंत चौटाला ने यह भी सवाल उठाया कि यदि केंद्र से मिलने वाला बजट समय पर आया है, तो फिर काम रोकने की ज़रूरत क्यों पड़ी। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार प्रशासनिक बहानों की आड़ में गरीबों के हक़ पर डाका डाल रही है। उनका कहना है कि यदि योजना में कोई तकनीकी या वित्तीय समस्या है, तो उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए, ताकि सच्चाई सामने आ सके।
सरकार की ओर से इस मुद्दे पर सफाई देते हुए कहा गया है कि मनरेगा के तहत काम नियमों और उपलब्ध बजट के अनुसार ही कराए जा रहे हैं। अधिकारियों का तर्क है कि कुछ जगहों पर तकनीकी जांच और ऑडिट के चलते अस्थायी रूप से काम रोके गए हैं, ताकि गड़बड़ियों को रोका जा सके। सरकार का दावा है कि किसी भी पात्र व्यक्ति को जानबूझकर काम से वंचित नहीं किया गया है।
हालांकि विपक्ष इस सफाई से संतुष्ट नहीं है। कांग्रेस और जननायक जनता पार्टी दोनों ने मिलकर सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि यदि वास्तव में पारदर्शिता है, तो सरकार को श्वेत पत्र जारी करने से डरना नहीं चाहिए। श्वेत पत्र से यह साफ हो जाएगा कि कितने काम रोके गए, कितने मज़दूर प्रभावित हुए और इसके पीछे असली वजह क्या है।
ग्रामीण इलाकों से आ रही रिपोर्टें बताती हैं कि कई परिवारों की आय पर सीधा असर पड़ा है। मनरेगा के काम रुकने से न सिर्फ़ मज़दूरी का नुकसान हुआ है, बल्कि स्थानीय विकास कार्य भी ठप पड़ गए हैं। सड़क मरम्मत, तालाबों की सफाई और जल संरक्षण जैसे काम अधूरे पड़े हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मनरेगा का मुद्दा आने वाले समय में हरियाणा की राजनीति में बड़ा विषय बन सकता है। ग्रामीण वोट बैंक पर इसका सीधा असर पड़ता है, और कोई भी सरकार इस वर्ग की नाराज़गी मोल नहीं लेना चाहेगी।
दुष्यंत चौटाला की श्वेत पत्र की मांग ने सरकार को असहज स्थिति में डाल दिया है। अब देखना यह होगा कि सरकार पारदर्शिता की दिशा में कदम उठाती है या फिर इस मुद्दे को राजनीतिक बयानबाज़ी बताकर टालने की कोशिश करती है। लेकिन इतना तय है कि मनरेगा को लेकर उठे सवाल जल्द शांत होने वाले नहीं हैं।


