हरियाणा विधानसभा का शीतकालीन सत्र उस समय भारी हंगामे और राजनीतिक टकराव का गवाह बन गया, जब ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा के दौरान कांग्रेस विधायकों और विधानसभा मार्शलों के बीच तीखी झड़प हो गई। सदन के भीतर यह स्थिति केवल नारेबाज़ी तक सीमित नहीं रही, बल्कि मामला हाथापाई और विधायकों को जबरन बाहर निकाले जाने तक पहुँच गया। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सदन अब संवाद और विमर्श की जगह सत्ता और विरोध के टकराव का अखाड़ा बनता जा रहा है।
पूरा विवाद उस वक्त शुरू हुआ जब सदन में ‘वंदे मातरम्’ पर चर्चा का प्रस्ताव आया। कांग्रेस विधायकों ने इस विषय पर चर्चा के तरीके और समय को लेकर आपत्ति जताई। उनका तर्क था कि सरकार इस मुद्दे के ज़रिये भावनात्मक राजनीति कर रही है और जनहित से जुड़े अहम सवालों से ध्यान भटका रही है। विपक्ष का कहना था कि बेरोज़गारी, महंगाई, किसानों की समस्याएं और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दों पर चर्चा से सरकार बच रही है।
जैसे-जैसे बहस आगे बढ़ी, कांग्रेस विधायक नारेबाज़ी करने लगे और सदन के वेल में पहुँच गए। अध्यक्ष द्वारा बार-बार अपील के बावजूद जब स्थिति नियंत्रित नहीं हुई, तो मार्शलों को हस्तक्षेप के निर्देश दिए गए। इसी दौरान धक्का-मुक्की शुरू हो गई, जिसमें कुछ विधायकों और मार्शलों के बीच शारीरिक टकराव की स्थिति बन गई। कई कांग्रेस विधायकों को सदन से बाहर ले जाया गया, जिसके बाद हंगामा और तेज़ हो गया।
कांग्रेस का आरोप है कि सरकार ने जानबूझकर मार्शलों का इस्तेमाल कर विपक्ष की आवाज़ दबाने की कोशिश की। पार्टी नेताओं ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर हमला बताया और कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों के साथ इस तरह का व्यवहार अस्वीकार्य है। विपक्ष का कहना है कि सरकार असहमति से डर रही है और इसलिए सदन को नियंत्रित करने के लिए बल प्रयोग का सहारा लिया जा रहा है।
वहीं सत्तापक्ष ने कांग्रेस के आरोपों को सिरे से खारिज किया। सरकार का कहना है कि विधानसभा की मर्यादा बनाए रखना अध्यक्ष और प्रशासन की जिम्मेदारी है। जब बार-बार चेतावनी के बावजूद नियमों का उल्लंघन किया गया, तब कार्रवाई ज़रूरी हो गई। सत्तापक्ष के अनुसार, विपक्ष सदन को जानबूझकर बाधित कर रहा था और राष्ट्रगीत जैसे विषय पर राजनीति करने की कोशिश कर रहा था।
इस पूरे घटनाक्रम ने हरियाणा की राजनीति में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। सवाल यह है कि क्या वैचारिक मतभेदों को शांति और तर्क के साथ सुलझाया जा सकता है, या फिर हर मुद्दा टकराव और प्रदर्शन की भेंट चढ़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि लगातार हो रहे ऐसे घटनाक्रम लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख को नुकसान पहुँचाते हैं।
विधानसभा लोकतंत्र का मंदिर मानी जाती है, जहाँ सरकार और विपक्ष दोनों की भूमिका समान रूप से महत्वपूर्ण होती है। लेकिन जिस तरह से सदन में अनुशासनहीनता और टकराव बढ़ रहा है, वह भविष्य के लिए चिंताजनक संकेत है। यह केवल एक दिन का हंगामा नहीं, बल्कि राजनीतिक संस्कृति में आ रहे बदलाव का प्रतिबिंब है, जिसे गंभीरता से देखने की ज़रूरत है।


