हरियाणा में लिंगानुपात को लेकर राज्य सरकार ने अब बेहद सख्त और निर्णायक रुख अपना लिया है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री आरती सिंह राव के निर्देश पर स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुधीर राजपाल की अध्यक्षता में आयोजित राज्य टास्क फोर्स (एसटीएफ) की साप्ताहिक बैठक में यह साफ कर दिया गया कि राज्य में अवैध गर्भपात पर रोक लगाने और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान को जमीन पर मजबूती देने के लिए अब ढुलमुल रवैये की कोई जगह नहीं रहेगी। बैठक के दौरान प्रदेश में लिंगानुपात में सुधार लाने के लिए की जा रही पहलों की समीक्षा की गई और जिन जिलों में हालात अपेक्षा से खराब पाए गए, वहां तत्काल सख्त कार्रवाई के आदेश दिए गए।
अतिरिक्त मुख्य सचिव सुधीर राजपाल ने बैठक में जानकारी देते हुए बताया कि इस वर्ष एक जनवरी से 28 जुलाई तक प्रदेश का औसत लिंगानुपात सुधर कर 905 तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 899 था। यह सुधार राज्य सरकार के सतत प्रयासों, डेकोय ऑपरेशनों और जमीनी स्तर पर की गई पहलों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि इसके बावजूद कुछ जिलों में हालात चिंताजनक बने हुए हैं। अंबाला, भिवानी, चरखी दादरी, पलवल और सिरसा जैसे जिलों ने लिंगानुपात में गिरावट दर्ज की है, जो संकेत करता है कि इन जिलों में निगरानी और कार्यवाही की गंभीर आवश्यकता है। इसी कारण इन जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों (सीएमओ) की पीएनडीटी अधिनियम के तहत सभी प्रशासनिक और निगरानी शक्तियों को वापस लेने का निर्णय लिया गया है। इनकी जिम्मेदारी अब पड़ोसी जिलों के सीएमओ को सौंपी जाएगी, जो अविलंब कार्यभार संभालकर प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे।
इसके साथ ही इन जिलों में पीएनडीटी अधिनियम के तहत कार्यरत नोडल अधिकारियों को चार्जशीट करने और उनके स्थान पर नए अधिकारियों की नियुक्ति के निर्देश भी दिए गए हैं। विशेष राज्य दस्ते बनाए जाएंगे, जिनमें एचसीएस और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को शामिल किया जाएगा ताकि अवैध गर्भपात रोकने के लिए निगरानी और सुधारात्मक कार्रवाई को अंजाम दिया जा सके।
राज्य सरकार अब रिवर्स ट्रैकिंग प्रणाली को और अधिक प्रभावशाली बना रही है, जिसके तहत सभी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) मामलों और विशेषकर 12 सप्ताह से अधिक की गर्भावस्था की स्थिति में जांच की जाएगी कि गर्भपात किस आधार पर किया गया और क्या इसमें किसी तरह का लिंग परीक्षण या पूर्व नियोजित भ्रूणहत्या का मामला तो नहीं है। खासतौर पर वे मामले जिनमें महिला की पहले से एक या अधिक बेटियां हैं, इनकी पृष्ठभूमि की गहनता से जांच की जा रही है। पिछले सप्ताह ही रिवर्स ट्रैकिंग के आधार पर 10 नए एफआईआर दर्ज किए गए, जो इस बात का प्रमाण हैं कि सरकार इस गंभीर मुद्दे पर किसी भी प्रकार की कोताही को स्वीकार करने के मूड में नहीं है।
राज्य टास्क फोर्स ने यह भी फैसला लिया है कि लिंग परीक्षण अथवा अवैध गर्भपात जैसे आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त डॉक्टरों या झोलाछाप चिकित्सकों की प्रमाणिक जानकारी देने वालों को एक लाख रुपये की नकद प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। यह कदम न केवल लोगों को जागरूक करेगा, बल्कि ऐसे मामलों की पहचान में भी मददगार साबित होगा।
अतिरिक्त मुख्य सचिव ने यह भी निर्देश दिए कि जो अस्पताल, क्लीनिक या मेडिकल सेंटर डायलेशन और क्यूरेटेज जैसी प्रक्रियाओं की आड़ में अवैध गर्भपात को अंजाम देते हैं, उन्हें चिन्हित कर उनकी सूची बनाई जाए। इन पर तुरंत कार्रवाई करते हुए उनके लाइसेंस रद्द किए जाएं, उन्हें आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं से हटाया जाए और उन्हें दी जा रही अन्य सभी सरकारी सुविधाएं तुरंत प्रभाव से बंद की जाएं।
बैठक में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के मिशन निदेशक रिपुदमन सिंह ढिल्लों समेत कई वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। यह साप्ताहिक बैठक इस बात का स्पष्ट संकेत है कि राज्य सरकार अब सिर्फ घोषणा नहीं, बल्कि कार्रवाई की भाषा बोल रही है। अवैध गर्भपात और भ्रूण हत्या पर नियंत्रण की दिशा में हरियाणा ने अपने कदम तेज कर दिए हैं और उम्मीद की जा रही है कि आने वाले समय में इस कठोर रवैये के सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।
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